संवाददाता; सगीर अंसारी
मुंबई: 14-16 जनवरी को मकर संक्रांति अवधि के दौरान प्रतिबंधित मांझे ने 1,000 पक्षियों की जान ली जबकि 800 से अधिक पक्षी घायल हो गए। पक्षी प्रेमियों ने बताया कि पुलिस के प्रतिबंध के बावजूद बाजार में जानलेवा मांझा उपलब्ध हैं।
दो दिवसीय उत्सव अवधि के बीच शहर भर में विभिन्न संगठनों द्वारा 25 से अधिक निःशुल्क पक्षी चिकित्सा शिविर लगाए गए। पशु प्रेमियों ने दावा किया कि दहिसर, बोरीवली, कांदिवली और मलाड में 500 से अधिक पक्षियों को बचाया गया। भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के मानद पशु कल्याण प्रतिनिधि मितेश जैन ने कहा कि पक्षियों की परेशानी सिर्फ त्योहार तक ही सीमित नहीं है क्योंकि फायर ब्रिगेड और गैर सरकारी संगठन पूरे साल मांजा के कारण घायल पक्षियों के लिए मदद करते हैं। जो बच जाते हैं उनमें से अधिकांश उड़ने में असमर्थ होते हैं। इसलिए उन्हें जीवन भर आश्रय स्थलों में रखना पड़ता है।
वालकेश्वर की रहने वाली हिया अडानी ने मकर संक्रांति पर मांझे से घायल एक पक्षी की जान बचाई.
जैन जो विरार स्थित करुणा ट्रस्ट के ट्रस्टी भी हैं ने कहा कि उनका संगठन पिछले 18 वर्षों से मकर संक्रांति के दौरान मुफ्त पक्षी चिकित्सा शिविर आयोजित कर रहा है। इस वर्ष अठारह पक्षियों का इलाज किया गया लेकिन तीन कबूतरों ने दम तोड़ दिया जबकि तीन अन्य ने प्राथमिक उपचार के बाद उड़ान भरी।
इसी तरह एनजीओ आरे की फाउंडेशन ने दो दिनों में 56 पक्षियों को बचाया। गैर-लाभकारी संस्था ने कहा कि सोमवार को तीन घायल कबूतरों की मौत हो गई। सीईओ ओंकार बाबर ने कहा, जागरूकता बढ़ाने के हमारे प्रयासों के बावजूद पक्षियों की चोटों में कोई कमी नहीं आई है। हालाँकि हमने एक शिविर स्थापित किया था।
सामाजिक कार्यकर्ता शैलेश मेहता ने मुंबई में मकर संक्रांति उत्सव के दौरान घायल पक्षी की जान बचाई
प्रतिबंधित चीनी मांझे की अंधाधुंध बिक्री की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि इस प्रकार की डोर अधिक तेज होती है जिससे पक्षियों की मृत्यु दर अधिक होती है और मनुष्यों के घायल होने का खतरा होता है। हालांकि उनकी राय थी कि सोशल मीडिया पर लगातार चल रहे अभियान के कारण इस साल पतंग उड़ाने वालों की संख्या कम रही। वे जानते हैं कि अपनी ख़ुशी के लिए पक्षियों को सज़ा देना सही नहीं है। त्यौहार ख़ुशियाँ फैलाने के लिए होते हैं किसी को दुःख पहुँचाने के लिए नहीं।
Post a Comment